हर्ष गुप्ता

हर्ष गुप्ता

नामहर्ष गुप्ता
उम्र27 वर्ष
स्थितिपैंक्रिएटाइटिस
वर्तमान स्थाननई दिल्ली

दिसंबर 2022, तकरीबन 25 साल की उम्र का एक लड़का बेड से उठकर अचानक फर्श पर उल्टी करने लगता है. वह इतना कमजोर हो चुका है कि उसी उल्टी पर औंधे मुंह गिर गया. तेज आवाज सुनकर मां-बाप और भाई उस कमरे में दाखिल होते हैं, जहां फर्श पर उल्टी पड़ी है. और वह लड़का बुरी तरह से सना हुआ है. पिता और भाई उसे उठाते हैं. बेबस मां इस बात से डरी हुई है कि कहीं वह अपने बेटे को खो ना दे. क्योंकि साल 2017 में पेट दर्द की शिकायत करने वाले हर्ष गुप्ता हिम्मत खोने लगे हैं. वह इस तरह नहीं जीना चाहते. पर, उन्हें हुआ क्या था.

यह कहानी साल 2017 के अगस्त महीने की 12 तारीख से शुरू होती है. जब नोएडा के रहने वाले हर्ष ने घरवालों से पेट दर्द की शिकायत की. वह कॉलेज से लौटे थे. तभी उन्होंने छाती के नीचे दर्द महसूस किया. दोपहर का 12 बज रहा था. मम्मी को लगा कि शायद खाना समय पर ना खाने की वजह से गैस का दर्द होगा. तुरंत आलू के पराठे बनाकर हर्ष को दे दिए. इसके साथ ही अजवायन, पुदीन हरा जैसी होम रेमिडीज भी आजमाई. लेकिन इन सबके बावजूद दर्द कम नहीं हुआ. मां और भाई उन्हें दिल्ली के एक अस्पताल में ले गए. हर्ष बताते हैं, ‘शुरुआत में बहुत अजीब दर्द था. कभी तेज हो जाता और कभी हल्का. घरवालों को लग रहा था कि शायद कॉलेज नहीं जाना चाहता, इस वजह से बहानेबाजी कर रहा है.डॉक्टर्स भी स्थिति देखकर हैरान थे.’

पर, इस हैरानी को दूर करने और वाकई क्या दिक्कत है, यह पता लगाने के लिए उन्होंने ऐहतियातन एमाइलेज और लाइपेज का टेस्ट कराया. रिपोर्ट आई तो परिवारवालों को बताया गया कि उनके बेटे यानी हर्ष को अक्यूट पेनक्रिएटाइटिस हुआ है. चार-पांच दिन अस्पताल में रखकर डॉक्टरों ने इलाज किया. जब दर्द से राहत मिली तो वापस घर भेज दिया गया. 2019 में भी एक रोज अचानक वैसा ही दर्द उठा. इस बार भी इलाज के बाद डिस्चार्ज. आगे के कुछ सालों में जिंदगी सामान्य सी नजर आई. पर, अभी तो कुछ बहुत बड़ा होने वाला था. ऐसा कुछ, जिसकी कहां ही कोई कल्पना कर सकता है.

और सब बिगड़ गया!

साल 2022, हर्ष इंडोनेशिया पहुंचे. यहां जी20 समिट का आयोजन चल रहा था. जिस रोज इंडोनेशिया से उन्हें भारत लौटना था, उससे एक दिन पहले फिर दर्द शुरू हुआ. पेट फूल चुका था. कुछ साथी उन्हें नजदीकी डिस्पेंसरी लेकर पहुंचे. यहां पेनकिलर्स लगाने के बाद हर्ष को वापस होटल लाया गया. अगली रोज जब वह सुबह लगभग 8 बजे सोकर उठे तो हालत बिगड़ चुकी थी.

हर्ष जानते थे कि उनकी 1 बजे की भारत के लिए फ्लाइट है. तो 9 बजे वह किसी तरह एयरपोर्ट के लिए निकले. क्योंकि वह ऐसा कतई नहीं चाहते थे कि उन्हें इंडोनेशिया के किसी अस्पताल में भर्ती होना पड़े. दरअसल, वहां सबकुछ आसान नहीं था. हर्ष बताते हैं,

‘मैं उस वक्त यह सोच रहा था कि मम्मी-पापा कैसे आएंगे. किस तरह इलाज शुरू होगा. तो मैंने फैसला लिया कि भारत लौटना ही सही है. मैं नेक पिलो को पेट पर बांधकर एयरपोर्ट तक पहुंचा. और वहां से फ्लाइट ली. प्लेन टेकऑफ होने से पहले मैंने दो पैरासिटामॉल खा ली थी. ताकि दर्द से कुछ राहत मिले और मैं फ्लाइट में सो जाऊं.’

यह उड़ान सीधा भारत के लिए नहीं थी. बल्कि बैंकॉक में करीबन छह घंटे का लेओवर था. वहां पहुंचते ही हर्ष ने एयरपोर्ट के ट्रांजिट होटल में एक रूम बुक किया. एयरपोर्ट पर जब वह उतरे तो उन्हें तेज दर्द हो रहा था. हर्ष जल्दी से रूम पर पहुंचे और पेट दबाकर बिस्तर पर बार-बार करवट लेने लगे. अगली फ्लाइट की टाइमिंग से तकरीबन एक घंटे पहले जब हर्ष उठे तो उनकी हालत और बिगड़ चुकी थी. उठते ही गाढ़े हरे रंग की उल्टी हुई. यह देख वह बहुत डर चुके थे. उन्होंने दिल्ली में अपने भाई को फोन किया. अपनी हालत बताई और कहा कि वह ऐसी स्थिति में नहीं हैं कि इमीग्रेशन के लिए बेंगलुरु एयरपोर्ट पर बहुत वक्त तक रुक सकें. लड़खड़ाई सी आवाज सुन हर्ष के परिवारवाले डर गए. उन्होंने सारा बंदोबस्त किया. एयरपोर्ट पर हर्ष को रिसीव करने के लिए उनकी दोस्त अपनी मां के साथ पहुंची थीं. इस दौरान उन्होंने ऐम्बुलेंस भी बुला ली. हर्ष जैसे ही एयरपोर्ट पर उतरे उन्हें व्हील चेयर से ऐम्बुलेंस तक ले जाया गया. यहां से वह सीधा अस्पताल पहुंचे.

सारी हिस्ट्री खंगालने के बाद डॉक्टर्स जान चुके थे कि यह पेनक्रिएटाइटिस का दर्द है. आनन-फानन उन्हें फेंटानिल (दर्द निवारक दवा) दी गई, ताकि हर्ष को राहत मिल सके. इसके बाद फिर कुछ उसी तरह का इलाज. जैसा साल 2017 में पहली बार दर्द उठने पर हुआ था. पर, इस दफे हर्ष की हालत बिगड़ रही थी. एक मौका ऐसा आ गया कि उन्हें आईसीयू में शिफ्ट करना पड़ा. खाना-पीना सब बंद. आईवी के जरिए दवाएं चढ़ रही थीं. तमाम टेस्ट और उनकी रिपोर्ट्स के लिए दौड़ते भागते परिवारवाले.

बेहतर इलाज की उम्मीद

बेटे की हालत में कोई सुधार नहीं था. मम्मी-पापा, भाई और दोस्त सब डर चुके थे. उन्होंने तय किया कि अब किसी और अस्पताल में ले जाएंगे. ताकि कुछ तो राहत नजर आए. मौजूदा अस्पताल में काफी नोकझोंक हुई. तब जाकर डिस्चार्ज मिला. हर्ष को दूसरे अस्पताल में भर्ती कराया गया. यहां सात-आठ दिनों तक हर्ष ICU में रहे. फिर सर्जरी के जरिए एनजी ट्यूब छोटी आंत तक डाली गई, ताकि हर्ष खाना-पीना शुरू कर सकें.

कुछ हफ्ते और इसी इंतजार में गुजरे कि हर्ष पूरी तरह ठीक हो जाएं. लेकिन ऐसा नहीं हो रहा था. उन्हें आगे के इलाज के लिए प्राइवेट रूम में शिफ्ट किया गया. और अभी दर्द हर्ष को बेचैन कर देता. मायूस मां-बाप और भाई हर रोज बहुत उम्मीद के साथ डॉक्टरों को देखते. पर, हर दफे यह उम्मीद तब कमजोर हो जाती जब हर्ष की आंखों में असहनीय दर्द के चलते आंसू उतर आते. परिवार बेबस था. वे हर रोज अकेले में कई बार टूटते, फिर खुद के साथ-साथ बेटे को समेटने की कोशिश करते.

एक रोज डॉक्टरों ने हर्ष को कुछ दिनों के लिए अस्पताल से डिस्चार्ज किया. क्योंकि इलाज की लंबी प्रक्रिया देख सभी की आंखें पथरा चुकी थीं. वे घर लौटे. अब हर नए दिन के शुरू होने और ढलने के बीच हर्ष कई बार उल्टियां करते. मां को लगता था कि उनसे कुछ बड़ा गुनाह हुआ है. अगर बेटा अस्पताल में रहता तो शायद उसे ये कष्ट ना मिलता.

सात दिनों बाद फॉलोअप के लिए हर्ष अपने पिता के साथ अस्पताल पहुंचे. डॉक्टर ने कहा, ये एनजी ट्यूब हटाकर पेट में एक पीडी स्टेंट डालेंगे. ताकि पैनक्रियाज कोलैप्स ना हो. इलाज के दरम्यान यह भी बात सामने आई कि हर्ष को 15 से 20 फीसदी नेक्रोसिस हो चुका है. यानी उनके कुछ फीसदी सेल्स डेड हो चुके हैं. इसके चलते उनकी सर्जरी की गई.

सर्जरी के चंद रोज बाद अस्पताल में भर्ती हर्ष ने डॉक्टर्स से एक मांग की. उन्होंने कहा,

‘मैं अपने घर नोएडा जाना चाहता हूं. डॉक्टर बोले, ‘ठीक है. पर 10 से 15 दिन बाद सर्जरी के लिए आना होगा.’ 

हर्ष घर तो पहुंचे. लेकिन यह वक्त बहुत तेजी से गुजर गया. 25 सितंबर को उन्हें वापस अस्पताल ले जाया गया. हर्ष डॉक्टर के केबिन में बैठे थे. तभी उन्हें तेज दर्द शुरू हो गया. यह दर्द पेनक्रिएटाइटिस का ही था. उन्हें तकरीबन 10 दिनों के लिए फिर से अस्पताल में रखा गया. 86 किलो वजन के साथ इंडोनेशिया जाने वाले हर्ष अब 60 किलो के हो चुके थे. परिवारवाले बेंगलुरु से दिल्ली, दिल्ली से बेंगलुरु की आए दिन दूरी नापते रहते. 20 जनवरी को हर्ष का गॉलब्लैडर हटाया गया. और सात दिन बाद यानी 27 जनवरी को उन्हें अस्पताल से छुट्टी मिली. लंबे इलाज, ढेरों इंजेक्शन, भयानक दर्द से गुजर रहे हर्ष की इच्छाशक्ति जवाब दे चुकी थी. वह नहीं चाहते थे कि इस तरह से जिंदगी आगे बढ़े. मां-पिता और भाई हर वक्त इस डर में जी रहे थे कि कहीं रात बहुत भारी ना हो.

जो भी हर्ष की हालत सुनता, वह संवेदनशीलता के साथ उनके ठीक होने की दुआ करता. इसी बीच हर्ष की बॉस ने पेनक्रिएटाइटिस के लिए उन्हें उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग में स्थित पड़ाव संस्था के बारे में बताया. जहां उनके एक दोस्त को पेनक्रिएटाइटिस से राहत मिली थी. क्योंकि मां-बाप अपने बेटे की इस हालत को देखकर परेशान थे. तो उनके लिए तिनके का सहारा भी काफी था. पिता ने सोशल मीडिया पर जानकारी खंगालनी शुरू की. कई वीडियोज देखे. पता चला कि वैद्य बालेंदुप्रकाश जो पद्मश्री से सम्मानित हैं, उनके इलाज से कई लोगों को फायदा मिला है. हर्ष को आनन-फानन पड़ाव संस्था में ले जाया गया.

वह बताते हैं, ‘जब मैं केंद्र में पहुंचा तो वहां सारी चीजें बहुत व्यवस्थित दिखीं. जैसे कि खाने पीने का वक्त तय था. यह भी कि सुबह छह बजे उठना है और रात 10 बजे तक सो जाना है. शुरुआत में तो जब मैं दवा खाता तो उल्टी हो जाती थी. लेकिन पांच-छह दिनों बाद सबकुछ सामान्य होने लगा. वहां वैद्य शिखा ने मेरी हालत को समझा. उन्होंने यह जाना कि मैं मानसिक रूप से कितना परेशान हूं. वहां जाते ही मैंने कई महीनों बाद खाना खाया था. वो हम सबके लिए बहुत खुशी का पल था.’

हर्ष कहते हैं, ‘इंडोनेशिया से वापस आने के बाद हालत इतनी बिगड़ चुकी थी कि कई बार मैं खुद सोचता था कि इस तरह से जीने से बेहतर मर जाना है. लेकिन पड़ाव में मेरी स्थितियों को समझा गया. यहां बताया गया कि किन ऐहतियातों और इलाज के साथ सबकुछ बेहतर होगा. सारी चीजें बहुत ट्रांसपेरेंट यानी पारदर्शी रखी गईं. जिससे विश्वास पैदा हुआ कि हां मैं सही हो सकता हूं.’

पड़ाव में इलाज के साथ-साथ हर्ष की लाइफस्टाइल पर बहुत ध्यान दिया गया. तकरीबन सवा साल तक चले इलाज के बाद हर्ष अब पूरी तरह से ठीक हो चुके हैं. वह अब बैडमिंटन भी खेलते हैं और दफ्तर भी जाते हैं. साथ ही अपनी कहानी सुनाते हुए 27 साल के हर्ष कई बार भावुक हो जाते हैं. हमने हर्ष से कुछ सवालों के जवाब जानने की कोशिश की. जैसे कि

प्राइवेट अस्पतालों में इलाज के दौरान उनका लगभग कितना खर्च हुआ?

इस पर वह बताते हैं, ‘उन दिनों प्राइवेट अस्पतालों में हुए इलाज में तकरीबन 30 से 35 लाख रुपये का खर्च हुआ.’

हॉस्पिटल्स और पड़ाव संस्था में क्या अंतर देखने को मिला?

सबसे बड़ा अंतर यह था कि प्राइवेट हॉस्पिटल में इलाज के दौरान अगले दिन की कोई उम्मीद नहीं दिखती थी. जबकि पड़ाव में इस बात पर बहुत जोर दिया गया. वैद्य शिखा ने यह जानने की कोशिश की कि मैं मानसिक रूप से कितना परेशान हूं. सभी की मदद से हिम्मत मिली. और एक उजाला सा दिखने लगा. यकीन होने लगा कि सब बेहतर होगा.

पेनक्रिएटाइटिस क्या है?

पेनक्रिएटाइटिस एक ऐसी बीमारी, जिसमें आपके पैनक्रियाज यानी अग्नायशय में सूजन आ जाती है. पेनक्रिएटाइटिस दो प्रकार के होते हैं: क्रॉनिक और एक्यूट. इन्हें इलाज के जरिए सही किया जा सकता है.

यह पेनक्रिएटाइटिस से जूझने वाले हर्ष गुप्ता की कहानी थी. जिनकी एक वक्त तो हिम्मत टूट चुकी थी. लेकि जरूरी है किसी बीमारी से जूझ रहे व्यक्ति को सही इलाज के साथ, पूरी तरह स्वस्थ होने का भरोसा दिलाने का. बाकी इस आपबीती के आखिर में इतना लिखना जरूरी है कि…हारना मना है.

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